Sunday, July 19, 2009

तेरे मेरे ओठोंपर मीठे मीठे गीत मितवा.......

शिवप्रसाद शर्मा और हरीप्रसाद चौरसिया यह नाम किसी अन्य परिचय के मोहताज नही। इन दिग्गजों ने ‘शिव-हरी’ के नाम से हिंदी सिनेमा को संगीत दिया है। भले ही उन्होने चुनींदा फिल्मों को ही संगीत दिया, लेकीन उनके संगीत की मीठास कौन भुल सकता है? आज उन्ही का संगीतबध्द किया हुआ एक बहोत ही खूबसुरत एवम् प्यारा सा गीत आपके खिदमत मे पेश कर रहा हू। नब्बे के दशक के प्रारंभ मे आयी चांदनी फिल्म वैसे तो ‘लव्ह ट्रँगल’ के घिसेपीटे फॉर्म्युलेपर आधारित थी लेकीन, उसके संगीत की जादू अदभूत थी। उसी फिल्म का ‘‘तेरे मेरे ओठोंपर मीठे मीठे गीत मितवा’’ इस गीत का सौदर्य मन को लुभाता है। इस मे हरीप्रसादजीं की बांसुरी एवम् शिवजींका संतूर कुछ पलों के लिए ही आता है लेकीन वह जैसे गीत की आत्मा बन गया। इस के आखीर मे ‘देखा एक ख्वाब...’ की एक छोटी सी झलक अपने को सिलसिला के सपनों के दुनिया मे ले जाती है। इस गीत मे कोरस का बहोत ही बढिया उपयोग हुआ है। शब्दों के बीच या अनूठा कोरस अपने को रूमानी दुनिया मे ले जाता है। और इस खूबसूरत गीत को उसी के अनुरूप परदेपर लाया लाया गया है। इसिलिए आप इसे सुने या देखे आपको दोनो रूपो मे मजा जरूर आएगा। उसे अगर आप सुनते है तो संगीत का जादूई रूप आपके तन मन को झकझोर देगा। इसे अगर आप देखते है तो जैसे ‘सोने पे सुहागा’ ही है। गीत के मीठे बोल, ह्दय के तार झंकृत करनेवाला संगीत और रूपहली परदेपर का तिलिस्म....वाह क्या कहने!

तेरे मेरे ओठोपे मीठे मीठे गीत मितवा
आगे आगे चले हम पीछे पीछे प्रीत मितवा
पहले पहले प्यार की पहली रात याद रहेगी

फुलों से इस शहर की मुलाकात याद रहेगी...

काश यही सारी उमर, यू ही जाए बीत मितवा

आगे आगे चले हम पीछे पीछे प्रीत मितवा
अखियों मे तू बस जा, अखियॉं मै बंद कर लू

पहले इन अखियों से, बाते मै चंद कर लू...

तेरी इन ही बातों ने, लिया मुझे जीत मितवा
आगे आगे चले हम, पीछे पीछे प्रीत मितवा
छोटे छोटे दिन रात, लंबी लंबी बातें है
जल्दी है किस बात की, बडी मुलाकाते है....
बातों मुलाकातों में उमर जाए बीत मितवा
आगे आगे चले हम पीछे पीछे प्रीत मितवा

Wednesday, July 15, 2009

खुला जीवन रहस्य: ‘द सिक्रेट’

क्या जीवन के सभी आयामो मे काययाबी हासिल करना संभव है? क्या सफल जिंदगी के कुछ खास सूत्र है? क्या इससे संबंधित कोई नियम है?
मित्रो, इस सवाल का जवाब देना आसान बात नही। इसी के संदर्भ मे कुछ दिन पहले एक जबरदस्त किताब हाथ लगी। ऑस्ट्रेलियन लेखिका र्‍हॉंडा बर्न लिखित ‘द सिक्रेट’ यह पुस्तक अपने पाठको को बहोत सारे सवालों का जवाब तो देती है, साथमे कामयाबी के कुछ जादूई नुस्खे भी दे जाती है। वैसे ‘द सिक्रेट’ को सही मायने मे किताब कह भी नही सकते। इस का स्वरूप भी कुछ अटपटा सा लग सकता है। संक्षेप मे कहे तो यह ‘लॉ ऑफ अट्रॅक्शन’ अर्थात आकर्षण के नियम के सिध्दांतपर आधारित है। दुनिका की हर एक सफल व्यक्ती एवम् समृध्द सभ्यता मे इसका कभी ना जरूर उपयोग किया है। बीसवी सदी के प्रारंभ मे अमेरिका के कुछ लेखकोंद्वारा इस नियम को लोकप्रिय रूप मे सादर किया गया। ‘न्यू थॉट’ विचारधारा ने इसका खूब उपयोग किया। इसपर कई किताबे लिखी गई। सिनेमासहीत अन्य प्रकारोमे भी इसका उपयोग हुआ। लेकीन ‘द सिक्रेट’ मे इसे बहोत ही कुशलता से सजाया गया है।
इस किताब की शुरूआत होती है लेखिका के निजी जिंदकी के हादसे से। निराशाओ से जुझती हुई लेखिका हे हाथ मे ‘लॉ ऑफ अट्रॅक्शन’  का सूत्र लगता है। इससे उसे बहोत लाभ होता है। मानवजाती के इतिहासमे इस नियम का आजतक किस तरह उपयोग हुआ इसकी उसे जिज्ञासा जागृत होती है। इसपर गहन अध्ययन के बाद वो आश्चर्यचकीत होती है। एक तो सदीयो से इसका कामयाब लोगोंने खूब उपयोग किया है इसका र्‍हॉन्डा बर्न को ज्ञान मिला। इसीके साथ वर्तमानमे भी कई लोगोने इसीसे अपने जीवनमे सबकुछ पाया है यह बात भी उन्हे पता चलती है। इसके बाद सौ के उपर कामयाब स्त्री-पुरूषोंसे साक्षात्कर कर उन्होने इस किताब का सृजन किया। इसमे आकर्षण के सिध्दांत के सिवा अन्य महत्वपूर्ण बाते भी है। जिससे आप भौतिक जीवन, स्वास्थ, रिश्ते आदी मे सफलता प्राप्त कर सकते है। वैसे भी अमरिकाही नही पुरी दुनिया मे ‘सेल्फ हेल्प’ किताबोंकी बाढ सी आयी है। लेकीन ‘द सिक्रेट’ इससे कई मायनो मे आगे है। इसमे बहोत सारे सफलतम व्यक्तीयों के जिंदगी का राज छिपा है। जिसका पाठकोंको लाभ मिल सकता है। इसपर आधारित ‘डीव्हीडी’ भी बहोत ही बढीया सी है। ‘द सिक्रेट’ यह पुस्तक और डीव्हीडी इस दोनो रूपो मे भी पूरी दुनिया मे धुम मचा चुका है। शायद इसका हिंदी संस्करण भी आ गया है। आप इसका मजा अवश्य लिजिए। शायद इससे आपके जीवन मे नयी बहार आए!

Tuesday, July 14, 2009

रिमझिम गिरे सावन!

दोस्तो,
वर्षा ऋतू मे किसी का दिल बिना झूमे भला कैसे रह सकेगा? भले ही इस साल बारिश कुछ देरी से शुरू हुई हो, इसके रंग मे पूरा जहॉं डुब चुका है। बारिशसे संबंधित हिंदी सिनेमामे कई गीत है। आज मै आपको एक सुरीला नग्मा पेश कर रहा हू। वर्षा ऋतू का असर तो पूरी कायनात पर होता है। लेकीन, इसमे किसी का भावावेश जुड जाए तो क्या बात है! मंजिल सिनेमा यह गीत भी कुछ इस प्रकार का ही है। ‘सावन’से पुरी सृष्टी जैसे नाचने लगती है। नायक और नायिका को भी इसने जरूर छुआ है। लेकीन, उनके मनकी भावना कुछ और ही कह रही है। इस भिगे हुए मौसम मे कोई अपनासा लग रहा है। लेकीन उसे कहे भी तो कैसे? इसी कश्मकश को बहोत बढीया रूपसे इस गीत मे पिरोया है। भलेही उसमे सावन का प्राकृतिक सौदर्य नही, लेकीन प्रेम के अभिव्यक्ती की तडपन इसमे खूब झलकती है।
रिमझीम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन
भिगे आज इस मौसममे लगी कैसी ये अगन....
रिमझिम गिरे सावन!
जब घुंगरूओंसी बजती है बुंदे...
अरमॉं हमारे पलके ना मुंदे
कैसे देखे सपने नयन सुलग सुलग जाए मन
भिगे आज इस मौसममे लगी कैसी ये अगन....
रिमझिम गिरे सावन!
महेफिल मे कैसे कहदे किसी से
दिल बंध रहा है किसी अजनभी से
हाय करे अब क्या जतन...... सुलग सुलग जाए मन
भिगे आज इस मौसममे लगी कैसी ये अगन....रिमझिम गिरे सावन!
चलिए ‘यू ट्युब’ के माध्यम से इस मीठे गीत का आनंद लेते है।
(गीत के बोल ‘गीतमंजुषा’ से साभार)

Tuesday, July 7, 2009

सलाम दुनिया


दोस्तो जल्द ही मै आपकी खिदमतमे आ रहा हू!.......

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